मेरठ में ईद की नमाज के बाद पोस्टर लहराने का मामला, सोशल मीडिया पर गर्म बहस

लिखा था- "सड़कों पर सिर्फ मुस्लिम नमाज नहीं पढ़ते

रिपोर्ट अखिलेश कुमार द्विवेदी

मेरठ। ईद-उल-फितर की नमाज के बाद मेरठ में एक पोस्टर लहराने का मामला सामने आया है, जिसमें लिखा था- “सड़कों पर सिर्फ मुस्लिम नमाज नहीं पढ़ते हैं!” इस पोस्टर में हिंदू धर्म के विभिन्न त्योहारों का उल्लेख करते हुए सवाल उठाया गया कि सार्वजनिक स्थलों पर धार्मिक आयोजनों को लेकर भेदभाव क्यों किया जाता है।

यह भी पढ़ें : प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भइया) राज्य विश्वविद्यालय से 33 कॉलेजों की संबद्धता रद्द

जानिए पोस्टर में क्या लिखा था?

Case of waving poster after Eid prayers in Meerut, hot debate on social media
फोटो : ईद की नमाज के बाद मेरठ में पोस्टर लहराते मुस्लिम युवक

पोस्टर में निम्नलिखित संदेश थे:

  • हिंदू होली सड़कों पर मनाता है।
  • शिवरात्रि सड़कों पर मनाता है।
  • कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु सड़कों पर निकलते हैं।
  • रामनवमी शोभायात्रा सड़कों पर होती है।
  • दिवाली पर पटाखे सड़कों पर फोड़े जाते हैं।
  • गणेश चतुर्थी पर जुलूस सड़कों पर निकाला जाता है।

इस पोस्टर का उद्देश्य यह बताना था कि धार्मिक आयोजनों के दौरान सार्वजनिक स्थानों का उपयोग केवल एक समुदाय तक सीमित नहीं है।

सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस

पोस्टर सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर इसे लेकर तीखी बहस छिड़ गई। कुछ लोगों ने इसे धार्मिक भेदभाव के खिलाफ आवाज बताया, तो कुछ ने इसे माहौल भड़काने की कोशिश करार दिया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह मामला तेजी से वायरल हो गया और कई लोग अपनी राय व्यक्त करने लगे।

प्रशासन का रुख

Case of waving poster after Eid prayers in Meerut, hot debate on social media
मेरठ प्रशासन का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है और अगर इससे किसी की भावनाएं आहत होती हैं या कानून-व्यवस्था पर असर पड़ता है, तो उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस सोशल मीडिया पर फैल रही भ्रामक जानकारियों पर भी नजर रख रही है, ताकि किसी तरह की गलतफहमी न फैले।

सड़कों पर धार्मिक आयोजनों को लेकर लगातार उठते सवाल

यह पहली बार नहीं है जब सड़कों पर धार्मिक आयोजनों को लेकर बहस हुई हो। इससे पहले भी कई शहरों में इस विषय को लेकर विवाद हुए हैं। प्रशासन और समाज को मिलकर इस विषय पर संतुलित समाधान निकालने की जरूरत है, ताकि सभी समुदायों को समान अधिकार मिलें और सार्वजनिक व्यवस्था भी बनी रहे।

यह भी पढ़ें : प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भइया) राज्य विश्वविद्यालय से 33 कॉलेजों की संबद्धता रद्द