दिल्ली दंगा मामला, कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ मजिस्ट्रेट कोर्ट के जांच के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टली
राहुल रिवेन्यू कोर्ट के मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दिल्ली दंगों में शामिल होने के मामले में कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ जांच करने का आदेश दिया था। एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने यह आदेश दिया था। इसके पहले भी ककंड़डूमा कोर्ट ने भी कपिल मिश्रा के मामले के लापरवाही बरतने पर ज्योति नगर थाने के एसएचओ पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा था कि कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ संज्ञेय आरोप है और इसकी जांच होनी चाहिए।
दिल्ली दंगा मामला , कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ मजिस्ट्रेट कोर्ट के जांच के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टली
- रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : नई दिल्ली ।
राऊज रेवेन्यू कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे के मामले में दिल्ली के कानून मंत्री कपिल मिश्रा कोर्ट की ओर से जांच के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टाल दी गई है।
स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने मामले की अगली सुनवाई 7 मई को करने का आदेश दिया है।
इससे पहले सेशन कोर्ट ने 9 अप्रैल को मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट के याचिका करता को नोटिस जारी किया था।
सेशंस कोर्ट में कपिल मिश्रा और दिल्ली पुलिस ने याचिका दायर की है।
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दरअसल, राऊज एवेन्यू कोर्ट के मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने यह आदेश दिया था।
इसके पहले ककंड़डूमा कोर्ट ने भी कपिल मिश्रा के मामले में लापरवाही बरतने पर ज्योति नगर थाने के एसएचओ पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा था कि कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ संज्ञेय आरोप है और इसकी जांच होनी चाहिए।
इससे पहले ककंड़डूमा कोर्ट ने कहा था कि या तो जांच अधिकारी ने कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ कोई जांच नहीं की। उसने कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ आरोपों को छिपाने की कोशिश की गई।
कोर्ट ने कहा था कि आरोपी कपिल मिश्रा सार्वजनिक व्यक्ति है और उसके बारे में ज्यादा जांच की जरूरत है, क्योंकि ऐसे लोग जनता के मत को सीधे-सीधे प्रभावित करते हैं। सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति को संविधान के दायरे में रहने की उम्मीद की जाती है।
ककंड़डूमा कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह के बयान दिए गए, वह सांप्रदायिक सद्भाव पर बुरी तरह असर डालते हैं। ऐसे बयान अलोकतांत्रिक होने के साथ देश के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर हमला है।
ऐसे बयान संविधान के मूल चरित्र का खुला उल्लंघन है। भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए) सांप्रदायिक और धार्मिक सद्भाव से जुड़ा हुआ है।
जिस तरह आरोपी को अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लाभ उठाने का हक है, वैसे ही उस पर सांप्रदायिक सद्भाव को संरक्षित रखने की भी ज़िम्मेदारी हैं।
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