नववर्ष और बैशाखी पर बहराइच में काव्य व विचार गोष्ठी, पारिवारिक मूल्यों और संस्कृति संरक्षण पर हुआ सारगर्भित विमर्श
अखिल भारतीय साहित्य परिषद बहराइच के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में कई साहित्यकारों और विचारकों ने किया राष्ट्रवाद, संस्कृति और परिवार पर संवाद
पी के पाण्डेय : बहराइच। यूपी के बहराइच जिले के सरयू नगर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वावधान में विक्रम संवत नववर्ष और बैशाखी के पावन अवसर पर एक प्रेरणादायक काव्य एवं विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना से भरपूर इस कार्यक्रम में समाज और राष्ट्र निर्माण को लेकर विचारों का आदान-प्रदान हुआ। मंच पर जहाँ एक ओर काव्य रस की बौछार हुई, वहीं दूसरी ओर संस्कृति, कुटुंब व्यवस्था और नववर्ष की मौलिकता को लेकर गहन विमर्श भी सामने आया।

इस गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार शिव कुमार रैकवार ने की, जबकि लखनऊ से पधारे परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष उमेश शुक्ल कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने ‘परिवार की आवश्यकता’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा, “हम दो हमारे एक” जैसे नारों से हमारे चाचा-चाची, मौसी, बुआ जैसे रिश्ते समाप्त हो रहे हैं। यही रिश्ते हमारी भारतीय संस्कृति की जड़ें हैं। अगर परिवार टूटेगा, तो समाज बिखरेगा और बच्चों को रिश्तों का स्वाभाविक स्नेह नहीं मिलेगा।”
उन्होंने मंच से सभी साहित्यकारों और कवियों से सामाजिक जागरूकता अभियान में भाग लेने की अपील की।
परिषद के महामंत्री रमेश चंद्र तिवारी ने विक्रम संवत नववर्ष की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “अंग्रेजों ने हमें भ्रमित करने के लिए 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस बनाया, जबकि अप्रैल ही हमारा सच्चा नववर्ष है। हमें अपने संस्कृति के अपमान को समझना होगा। चंदन को उन्होंने Sandalwood (पादुका लकड़ी) नाम दिया, जबकि उसका उचित नाम संतवुड होना चाहिए। अब वक्त आ गया है कि हम अंग्रेजी नववर्ष का बहिष्कार करें और अपने परंपरागत नववर्ष को सम्मान दें।”
साहित्यिक योगदान और विचारों का आदान-प्रदान

इन सभी ने कविता पाठ, वक्तव्य और सांस्कृतिक विमर्श के माध्यम से श्रोताओं के बीच राष्ट्रवादी भावना, सामाजिक समरसता और संस्कृति की रक्षा का संदेश दिया।
मालूम हो कि यह कार्यक्रम न केवल एक साहित्यिक संगोष्ठी था, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक पहल भी थी, जो भारतीय संस्कृति और परिवार की अहमियत को दोबारा याद दिलाने के लिए बेहद जरूरी है। बहराइच जैसे जनपद में इस तरह के आयोजन समाज में सकारात्मक बदलाव के संकेत हैं।