प्रतापगढ़ की छात्रा रिया की मौत, समाज के सामने एक कड़वा सच उजागर
रिया की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि हमारे समाज और शिक्षा व्यवस्था का एक क्रूर प्रतिबिंब है। आज जब हम चांद पर पहुंचने और डिजिटल इंडिया बनाने की बात करते हैं तब भी हमारे देश में बच्चे सिर्फ इसलिए अपनी जान दे रहे हैं क्योंकि उनके माता-पिता फीस नहीं भर पाए। प्राइवेट स्कूल जो शिक्षा के मंदिर होने चाहिए। आज मुनाफे के अड्डे बन गए हैं। नई शिक्षा नीति जिसका ढिंढोरा पीटा जाता है, क्या वह यही समावेशी भारत है। जहां गरीब बच्चों को अपमान और मौत के सिवा कुछ नहीं मिलता?
प्रतापगढ़ की छात्रा रिया की मौत , समाज के सामने एक कड़वा सच उजागर
- रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश ।
उत्तर प्रदेश की एक छोटी सी बस्ती में एक ऐसी घटना घटी, जिसने न केवल एक परिवार को तोड़ा, बल्कि पूरे समाज के सामने एक कड़वा सच उजागर कर दिया। 16 साल की रिया प्रजापति , जो कमला शरण इंटर कॉलेज में कक्षा 9 की छात्रा थी। आज हमारे बीच नहीं हैं।
उसने अपनी जान इसलिए दे दी, क्योंकि स्कूल ने ₹800 की बकाया फीस के चलते उसे परीक्षा देने से रोक दिया और सबके सामने अपमानित किया। यह कहानी सिर्फ रिया की नहीं बल्कि उस व्यवस्था की है, जो गरीब और कमज़ोर व मिडिल क्लास को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रही है।
यह उन तमाम माता-पिताओं की व्यथा है, जो अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। मगर फिर भी समाज के क्रूर नियमों के आगे हार जाते हैं।
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रिया एक साधारण परिवार से थी। उसके पिता कमलेश प्रजापति और माता पूनम देवी ने शायद उसे पढ़ा-लिखाकर बेहतर भविष्य देने का सपना देखा था, लेकिन यह सपना उस दिन चकना चूर हो गया, जब स्कूल के प्रबंधन ने उसे परीक्षा कक्ष से बाहर निकाल दिया।
₹800 थी शुल्क राशि
एक ऐसी राशि जो शायद किसी के लिए मामूली हो, लेकिन रिया के परिवार के लिए यह राशि उसकी शिक्षा और सम्मान की कीमत बन गई।
क्या रिया का अपमान सिर्फ उसकी गलती थी ?
नहीं, यह उस व्यवस्था की नाकामी है, जो शिक्षा को व्यापार बना चुकी है। जहां गरीब बच्चों के सपनों की कोई कीमत नहीं है।
रिया की मौत एक हादसा नहीं, बल्कि हमारे समाज और शिक्षा व्यवस्था का एक क्रूर प्रतिबिंब है और जब हम चांद पर पहुंचने और डिजिटल इंडिया बनाने की बात करते हैं, तभी हमारे देश में बच्चे सिर्फ इसलिए अपनी जान दे रहें हैं, क्योंकि उनके माता-पिता फीस नहीं भर पाए। प्राइवेट स्कूल जो शिक्षा के मंदिर होने चाहिए, आज वह मुनाफे के अड्डे बन गए हैं।
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जहां गरीब बच्चों को अपमान और मौत के सिवा कुछ नहीं मिलता।
रिया की कहानी हर उस इंसान को करती है जो इस देश का नागरिक है। यह घटना हमें यह सवाल पूछने को मजबूर करती है कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है?
क्या हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि एक बच्ची की मौत हमें नहीं झकझोरती?
जनता-जनार्दन को अब चुप्पी तोड़नी होंगी। यह वक्त है कि हम शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार बनाएं। ना कि सिर्फ अमीरों की सुविधा, हमें उन स्कूलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होंगी, जो बच्चों को अपमानित करते हैं और उनके परिवारों को मजबूत करते हैं।
रिया अब कभी स्कूल नहीं जाएंगी, लेकिन उसकी मौत को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम ऐसी घटनाओं को रोकें।
सरकार को चाहिए कि गरीब परिवारों के बच्चों के साथ खड़ा हो। ना की उन्हें हाशिए पर धकेल दें। रिया की मां पूनम देवी की तहरीर पर स्कूल प्रबंधक और शिक्षकों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ हुआ है। लेकिन क्या यह काफ़ी है।
नहीं यह सिर्फ शुरुआत है , हमें पूरे सिस्टम को बदलना होंगा।
मेरा व्यक्तिगत विचार है कि रिया की मौत एक चेतावनी है, हमारे लिए , हमारे समाज के लिए , हमारी सरकार के लिए , अगर हम भी नहीं जागे, तो न जाने कितनी रिया अपने सपनों के साथ चुपचाप दुनिया छोड़ देंगी।
शिक्षा का हक, सम्मान का हक, और जीने का हक !
रिया को श्रद्धांजलि तभी सच्ची होंगी, जब हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई और कोई रिया इस तरह का कदम ना उठाएं।
जनता-जनार्दन की ताकत से ही यह संभव है।
उठिए, बोलिए, और बदलाव लाइए – रिया के लिए, भारत के हर बच्चे के लिए, भारत सरकार से मेरी एक मांग है कि सभी राज्यों में शिक्षा मुफ्त हों।
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