रेप और रेप की कोशिश करने वाले कमेंट पर सुप्रीम कोर्ट सख़्त, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था अजीबों-गरीब फैसला

पीठ ने कहा, हमें यह करते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। यह निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था, बल्कि इसे सुरक्षित रखने के चार महीने बाद सुनाया गया था। इस प्रकार इसमें विवेक का प्रयोग किया गया है। हम आमतौर पर इस स्तर पर स्थगन देने में हिचकिचाते हैं। लेकिन टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ है और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। हम उक्त पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।

रेप और रेप की कोशिश करने वाले कमेंट पर सुप्रीम कोर्ट सख़्त, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया था अजीबों-गरीब फैसला

  • रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ :नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि पीड़ित बच्ची के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास करने का अपराध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने जज को पूरी तरह से असंवेदनशील फैसला लिखने के लिए फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: लिखा था संज्ञान

सर्वोच्च न्यायलय ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय द्वारा पारित दिनांक 17 मार्च 2025 के आदेश पर स्वत: लिया था। इस मामले पर आज न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई की।

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पीठ ने कहा कि  “वी द वूमन ऑफ़ इंडिया” नामक संगठन द्वारा अदालत के संज्ञान में यह निर्णय लाएं जाने के बाद स्वत संज्ञान लेते हुए यह मामला शुरू किया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने विवादास्पद आदेश पर रोक लगाने का फैसला किया।

पीठ ने कहा कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह हमने लिखने वाले की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है। यह निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था। बल्कि इसे सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया। इस प्रकार, इसमें विवेक का प्रयोग किया गया। हम आमतौर इस स्तर पर स्थगन देने में हिचकिचाते हैं।

लेकिन पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है। हम उक्त पैरा में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं।

केंद्र और यूपी सरकार से मांगा जवाब

शीर्ष अदालत ने इस मामले पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी सहायता मांगी है। पीठ ने कहा कि केंद्र, उत्तर प्रदेश राज्य और उच्च न्यायालय के समक्ष पक्षकारों को नोटिस जारी करते हैं।

हाई कोर्ट ने क्या दिया था निर्णय?

हाई कोर्ट ने कहा था कि लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार के प्रयास के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह कृत्य  केवल तैयारी का गठन करतें हैं, जो अपराध करने के वास्तविक प्रयास से अलग है।

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